नौकरी छोड़कर स्कूटर से यशोदा को दुनिया दिखाने निकले कृष्ण,62 हजार किमी चलकर पहुंचे काशी
10 Apr 2023,
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नौकरी छोड़कर स्कूटर से यशोदा को दुनिया दिखाने निकले कृष्ण,62 हजार किमी चलकर पहुंचे काशी
कभी भगवान कृष्ण ने बाललीला के दौरान मुंह में मां यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। अब मैसूर के 44 वर्षीय कृष्ण कुमार अपनी 74 वर्ष की मां चूड़ा रत्नम्मा को स्कूटर से दुनिया दिखाने निकले हैं। वाराणसी पहुंचने पर सोमवार को उनका नागरिक अभिनंदन किया गया।
वाराणसी।माता-पिता की सेवा के लिए श्रवण कुमार की हमेशा से मिशाल दी जाती है।कर्नाटक के मैसूर के रहने वाले कृष्ण कुमार जिस तरह अपनी मां को लेकर देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी पहुंचे,लोग कृष्ण कुमार को मॉडर्न श्रवण कुमार कह रहे हैं।दो हेलमेट,बैग में कुछ जरूरी सामान, दो बोतल पानी और एक छाता लेकर केए-09 एक्स 6143 नंबर की 25 साल पुरानी बजाज चेतक स्कूटर से कृष्ण कुमार अपनी मां को दुनिया दिखाने निकले हैं।
अभी तक कृष्ण 62 हजार किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर तीन देशों की यात्रा पूरी कर चुके हैं।कभी कृष्ण ने बाललीला के दौरान मुंह में मां यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। अब मैसूर के 44 वर्षीय कृष्ण कुमार अपनी 74 वर्षीय मां चूड़ा रत्नम्मा को स्कूटर से दुनिया दिखाने निकले हैं।
काशी में कृष्ण और उनकी मां का अभिनंदन
नौकरी छोड़कर कृष्ण कुमार ने अपनी मां को देश के मंदिरों में दर्शन- पूजन कराने के उद्देश्य से सितंबर 2020 में 25 साल पुरानी बजाज चेतक स्कूटर से मैसूर से यात्रा शुरू की। इस यात्रा को उन्होंने मातृ सेवा संकल्प नाम दिया है। भूटान, नेपाल, म्यामांर सहित देश के कई राज्यों में भ्रमण करने बाद चित्रकूट होते हुए रविवार को देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी पहुंचे।आज सोमवार को तुलसी घाट पर कृष्ण और उनकी मां का नागरिक अभिनंदन किया गया। संकट मोचन मंदिर के महंत और आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने उनका माल्यार्पण कर अंगवस्त्रम से स्वागत किया।
संकट मोचन मंदिर के महंत ने कहा कि मां के लिए समर्पित ऐसे पुत्र का अभिनंदन होना ही चाहिए। इससे समाज में एक अच्छा संदेश जाएगा। आज की युवा पीढ़ी भी अपने मां-बाप की इसी तरह से सेवा करेगी। वहीं दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार ने बताया कि उनकी यही इच्छा है कि उनकी मां देश के सभी मंदिरों में दर्शन पूजन करें। वह अपने पिता द्वारा उपहार में मिली बजाज चेतक स्कूटर से ही इस पावन यात्रा पर निकले हैं।
2016 में छोड़ी नौकरी, नहीं की शादी
पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर रहे कृष्ण कुमार ने शादी नहीं की।
कृष्ण ने बताया कि कर्नाटक के मैसूर में उनकी मां ने ताउम्र संयुक्त परिवार की सेवा करने में बिता दिया। वन विभाग में कार्यरत रहे पिता दक्षिणामूर्ति की 2015 में मृत्यु हुई तो बंगलौर में रह रहे कृष्ण कुमार मां को अपने पास ले आए। शाम को ऑफिस से लौटकर दोनो मां-बेटे आपस में बात करते तो एक दिन मां ने बताया कि उन्होंने घर के बाहर कभी कोई स्थान नहीं देखा,जिस पर उन्हें लगा जिस मां ने उन्हें पूरी दुनिया देखने के काबिल बनाया, घर के हर शख्स को बनाने के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया। अब वह मां को दुनिया दर्शन कराएंगे। लिहाजा साल 2016 में उन्होंने नौकरी छोड़कर यात्रा शुरु कर दी। इस यात्रा में उन्होंने पिता के स्कूटर को हमसफर बनाया, ताकि पिता की याद भी बनी रहे। इसी स्कूटर से वह नेपाल, भूटान, म्यांमार देशों की यात्रा मां के साथ कर चुके हैं और अब कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे दर्शन पर निकले हैं।
लॉकडाउन में देश की सीमा पर फंसे रहे
अनुभव साझा करते हुए कृष्ण कुमार ने बताया लॉकडाउन के दौरान वह मां के साथ यात्रा पर थे। भूटान सीमा पहुंचे तो पता चला सीमाएं सील हैं। कोरोना के उस दौर में एक माह 22 दिन उन्होंने भारत-भूटान सीमा के जंगलों में गुजारे। इसके बाद जब उनका पास बना तो एक सप्ताह में 2673 किलोमीटर स्कूटर चलाकर वापस मैसूर आ गए। सब कुछ सामान्य होने के बाद 15 अगस्त 2022 से उन्होंने दोबारा यात्रा शुरु की है।
व्यक्ति के न रह जाने पर इज्जत देने का क्या मतलब
यात्रा के पीछे की प्रेरणा के बारे में वह बताते हैं कि जब लोग दुनिया से अंतिम विदा ले लेते हैं तो उनकी फोटो पर माला चढ़ाकर मृतक की इच्छाओं के बारे में बाते करते हैं, उन्हें याद करते हैं। जबकि रिश्तों को, व्यक्तियों का खयाल जीते जी रखना चाहिए। मैं यह मलाल लेकर नहीं जीना चाहता था। इसलिए पिता के गुजर जाने के बाद मां को अकेला छोड़ने की बजाय उन्हें दुनिया दिखाने का निर्णय किया और यात्रा पर निकल पड़े।
( न्यूज़ प्रतापगढ़ एक्सप्रेस )