विघ्नहर्ता मंगल मूर्ति गणपति
09 Oct 2017,
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-चामुंडा स्वामी- भगवान गणेश के अनेक स्वरूप हैं, जिनमें से एक रूप है विघ्नहर्ता गणेश का। विघ्नहर्ता गणेश के रूप में वे अपने भक्तों और उपासकों के विघ्नों और कष्टों को दूर करते हुए उनकी राह में आने वाली बाधाओं को हटा कर सफलता को सहज बनाते हैं। इसीलिए जब जीवन में सफलता न मिल रही हो, लक्ष्यों की प्राप्ति में बाधा और कठिनाई सामने आ रही हो तो इसके लिए भगवान गणपति के विघ्नहर्ता स्वरूप की उपासना बहुत प्रभावी होती है। शास्त्रों में विघ्नहर्ता गणेश की पूजा-उपासना के कई मंत्र बताए गए हैं, जिनमें से कुछ मंत्र अत्यन्त प्रभावशाली और सरल हैं। इन मंत्रों को अगर नित्य की पूजा में शामिल कर लिया जाए तो गणपति हमारे जीवन की दिशा और दशा को बदल देंगे। ऊं गं क्षिप्र-प्रसादनाय नमः। अगर आप किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए प्रयासरत हैं, किसी क्षेत्र विशेष में सफलता के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं तो रोज इस मंत्र का 21 या 51 की संख्या में जप करें। यदि इस मंत्र का जाप सुबह-शाम किया जाए तो यह और प्रभावी होता है। नित्य पूजा में इस मंत्र के प्रयोग के अलावा इस मंत्र की विशेष साधना का प्रावधान भी शास्त्रों में बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार पूरी निष्ठा और आस्था से शास्त्र सम्मत विधियों का पालन करते हुए विशेष साधना के द्वारा अगर इस मंत्र को सिद्ध कर लिया जाए तो उससे प्रसन्न होकर गणपति अपने साधक की समस्त कठिनाइयों को दूर करते हैं और मनोवांछित अभिलाषाओं की पूर्ति करते हैं। इस मंत्र की विशेष साधना करने वालों को कुछ सावधानियां भी रखनी होंगी। जब एक बार संकल्पित होकर अपनी मंत्र-साधना आरम्भ कर दें तो बीच में इसे अधूरा न छोड़ें। ऐसा करना जहां त्रुटिपूर्ण है, वहीं इसका विपरीत प्रभाव पड़ने की संभावना भी प्रबल हो जाती है। साधना अधूरी छोड़ देने से बेहतर है, इसे शुरू ही न करना। भगवान गणेश का ये मंत्र विघ्नों को दूर करता है, जो साधना के अधूरा रहने पर विघ्नदायक भी हो सकता है। बाधाओं को दूर करने व सफलता प्राप्ति के लिए भगवान गणपति के विघ्नहर्ता स्वरूप की कृपा हेतु स्तोत्र पाठ भी फलदायी होता है। स्रोत्र पाठ नित्य पूजा, मंत्र जप के साथ भी किया जा सकता है और भगवान गणेश की उपासना कर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। विघ्न-बाधाओं को दूर करने के उद्देश्य से गणपति के स्रोत्र का पाठ करने वालों का चाहिए कि वे पाठ के समय उनके विघ्नहर्ता स्वरूप का ही ध्यान करें। मंत्र-जप में भी इसी स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। उससे साधना-उपासना अनुकूल रूप से प्रभावी होती है।