व्यंग्य : बोलो अच्छे दिन आ गए
22 May 2016,
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हमने तो वही किया जो अभी तक किया और कहा गया व जैसा पिछली सरकारें करती आई हैं। बस फर्क सालों का है, जो काम पिछली सरकारें 60 सालों में न कर सकी, वर्तमान सरकार पांच साल में कर दिखाएगी, यही तो वादा था। और वादे तो होते ही तोड़ने के लिए हैं। वादे हैं वादों का क्या...।
आपको याद होगा, पिछली बार 13 दिन की सरकार में हमने वो किया, जिसकी कल्पना भी नहीं की गई थी। एनरान कंपनी को 80 प्रतिशत बैंक गारंटी पर बिजली उत्पादन का ऐतिहासिक फैसला किया था। 1300 कृषि वस्तुओं का सीमा शुल्क 200 प्रति से घटाकर 0 से 10 प्रतिशत तक करने का दीर्घकालीन काम इसी सरकार ने बखूबी किया, जिसका पालन दूसरी सरकारें भी धीरे-धीरे करती आई हैं।
बंद आंखों से दिमाग चलाया जाता है। रात के अंधेरे में अच्छे दिन देखने पड़ते हैं। चीनी 34 रुपए से घटकर 23 रुपए किलो पर आ गई। जनता को फायदा हुआ कि नहीं, चाहे किसानों के नाम पर राज्य सरकारों ने मिल मालिकों को पैकेज पर पैकेज दिया हो।
जब हमारी सरकार बनी तो 78 रुपए लीटर पैट्रोल था। आज 60 से 68 रुपए है। चाहे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी कीमत 40 रुपए से भी कम क्यों न हो। सोना-चांदी चूंकि गरीब से गरीब लोगों के पास होता है, इसलिए उसकी कीमत 31000-2500 के बजाए 49000-33600 रुपए कर दी, ताकि गोल्ड ब्रांड में निवेश हो सके और अर्थव्यवस्था तेजी से दौड़ने लगे। क्या ये अच्छे दिन आपको दिखाई नहीं देते?
पुलिस विभाग देशद्रोही, आतंकवादियों, आदिवासियों, किसानों और छात्रों को नियन्त्रित करने में लगी है। क्या यह हमारी सफलता नहीं है? क्या यह सब अच्छे दिनों की सुगबुगाहट नहीं है?
गंगा की सफाई, देशद्रोहियों की सफाई अभी तक जारी है। लाखों करोड़ों रुपए, सफाई अभियान को सफल बनाने के लिए विज्ञापनों में लगाए जा रहे हैं। झाडू, बैनर, पोस्टर, फिल्मी सितारों के साथ किताब का विमोचन और सेल्फी लेकर भारत को एकदम स्वच्छ बनाने की मुहिम जारी है। क्या यह अच्छे दिन की शुरुआत नहीं है?
भ्रष्टाचारियों के नाम सामने आ चुके हैं। जिन महानायकों, पूंजीपतियों, नेताओं के नाम पनामा लिस्ट में आए हैं, उनको छोड़कर बाकी सबको जेल में डालने की तैयारी है। क्या यह अच्छे दिन के संकेत नहीं? पूरी दुनिया में देश का डंका बज रहा है...अमेरिका भारत की शर्तों पर झुक गया है...पाक में हड़कंप मच गया। चीन जैसे गद्दार देश में भारत की तूती बोल रही है। विश्वभ्रमण से देश को विश्वगुरु मान लिया है, चाहे आर्थिक, सामाजिक खुशहाली के मामलों में दूसरे देशों की तुलना में हमारे देश की रैंक नीचे से पहले या दूसरे नंबर पर हो।
भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, आत्महत्या के मामले में तो एक नंबर की उपाधि आज तक बनाए रखी है। देश के हर नागरिक के खाते में 15 लाख आ चुके हैं। स्टैंड अप इंडिया के जरिए स्वरोजगार के लिए 10 लाख से 1 करोड़ रुपये बांटे जा रहे हैं। रोजगार इतने पैदा हो चुके हैं कि एक व्यक्ति के लिए लाखों वेकैंसी निकलती हैं। भर्ती फार्म से बिलकुल पैसा नहीं कमाया जाता, चाहे वो भर्ती कैंसिल ही क्यों न करनी पड़े। आलोचकों से मेरी अपील है कि सकारात्मक ही सोचें, नकारात्मकता हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी।... तो बोलो अच्छे दिन आ गए।