‘ॐ’ के प्रणव नाम से जुड़ी शक्तियों, स्वरूप व प्रभाव के गहरे रहस्य
16 May 2017, 220
सनातन धर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति देव उपासना के दौरान शास्त्रों, ग्रंथों में या भजन और कीर्तन के दौरान ‘ॐ’ महामंत्र को कई बार पढ़ता, सुनता या बोलता है।
धर्मशास्त्रों में यही ‘ॐ’ प्रणव नाम से भी पुकारा गया है। असल में इस पवित्र अक्षर व नाम से गहरे अर्थ व दिव्य शक्तियां जुड़ीं हैं, जो अलग-अलग पुराणों और शास्त्रों में कई तरह से उजागर हैं।
खासतौर पर शिवपुराण में ‘ॐ’ के प्रणव नाम से जुड़ी शक्तियों, स्वरूप व प्रभाव के गहरे रहस्य बताए हैं।

शिवपुराण के अलावा अन्य धर्मग्रंथों की मान्यता व विज्ञान के नजरिए से ‘ॐ’ बोलने के शुभ प्रभाव क्या हैं-

शिवपुराण में प्रणव यानी ‘ॐ’ के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ, शक्ति और भाव बताए गए हैं।
इनके मुताबिक – प्र यानी प्रपंच, न यानी नहीं और व: यानी तुम लोगों के लिए।
सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के सबसे अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है।
यही वजह है कि ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है।
दूसरे अर्थों में प्रनव को ‘प्र’ यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली ‘नव’ यानी नाव बताया गया है।
इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से ‘प्र’ – प्रकर्षेण, ‘न’ – नयेत् और ‘व:’ युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है।

इसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव है।
धार्मिक दृष्टि से परब्रह्म या महेश्वर स्वरूप भी नव या नया और पवित्र माना जाता है। प्रणव मंत्र से उपासक नया ज्ञान और शिव स्वरूप पा लेता है। इसलिए भी यह प्रणव कहा गया है।
शिवपुराण की तरह अन्य हिन्दू धर्मशास्त्रों में भी प्रणव यानी ॐ ऐसा अक्षर स्वरूप साक्षात् ईश्वर माना जाता है और मंत्र भी। इसलिए यह एकाक्षर ब्रह्म भी कहलाता है। धार्मिक मान्यताओं में प्रणव मंत्र में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सामूहिक शक्ति समाई है। यह गायत्री और वेद रूपी ज्ञान शक्ति का भी स्त्रोत माना गया है।

इसी तरह देव पूजा-पाठ के दौरान आपने गौर किया होगा कि वैदिक, पौराणिक या बीज मंत्र सभी की शुरुआत ऊँकार से होती है। असल में, मंत्रों के आगे ‘ॐ’ लगाने के पीछे का रहस्य धर्मशास्त्रों में मिलता है ।

शास्त्रों के मुताबिक पूरी प्रकृति तीन गुणों से बनी है। ये तीन गुण है – रज, सत और तम।
वहीं ‘ॐ’ को एकाक्षर ब्रह्म माना गया है, जो पूरी प्रकृति की रचना, स्थिति और संहार का कारण है। इस तरह इन तीनों गुणों का ईश्वर ‘ॐ’ है। चूंकि भगवान गणेश भी परब्रह्म का ही स्वरूप हैं। उनके नाम का एक मतलब गणों के ईश ही नहीं गुणों का ईश भी है।
यही वजह है कि ‘ॐ’ को प्रणवाकार गणेश की मूर्ति भी माना गया है।

श्रीगणेश मंगलमूर्ति होकर प्रथम पूजनीय देवता भी हैं। इसलिए ‘ॐ’ यानी प्रणव को श्री गणेश का प्रत्यक्ष रूप मानकर वेदमंत्रों के आगे विशेष रूप से लगाकर उच्चारण किया जाता है, जिसमें मंत्रों के आगे श्रीगणेश की प्रतिष्ठा, ध्यान और नाम जप का भाव होता है, जो पूरे संसार के लिए बहुत ही मंगलकारी, शुभ और शांति देने वाला होता है।

इसी तरह देव पूजा-पाठ के दौरान आपने गौर किया होगा कि वैदिक, पौराणिक या बीज मंत्र सभी की शुरुआत ऊँकार से होती
है। असल में, मंत्रों के आगे ‘ॐ’ लगाने के पीछे का रहस्य धर्मशास्त्रों में मिलता है ।

शास्त्रों के मुताबिक पूरी प्रकृति तीन गुणों से बनी है। ये तीन गुण है – रज, सत और तम। वहीं ‘ॐ’ को एकाक्षर ब्रह्म माना गया है, जो पूरी प्रकृति की रचना, स्थिति और संहार का कारण है। इस तरह इन तीनों गुणों का ईश्वर ‘ॐ’ है। चूंकि भगवान गणेश भी परब्रह्म का ही स्वरूप हैं। उनके नाम का एक मतलब गणों के ईश ही नहीं गुणों का ईश भी है।
यही वजह है कि ‘ॐ’ को प्रणवाकार गणेश की मूर्ति भी माना गया है।

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