लान्गुल नरसिम्हा देवा
04 Jul 2017,
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लान्गुल नरसिम्हा देवा उङीसा के महान राजा थे जिन्होने मुगलों को नाको चने चबवा दिये ईनके बारे में बीकेपेडिया भी जानकारी नहीं दे रहा है भारत के स्कूलों में ईनके बारे मे आजतक नहीं पढाया जाता है और नहीं बताया जाता है ।
भारत के ईस महान राजा के बारे में आपको जानकर गर्व होगा जिसने मुगलों को उनकी ही नीति(धोखा) से हराया ।
गाजर मूली की तरह खाटकर रख दिया था ईस महान योद्धा ने ऐसे बीरों की गाथेयें जो अमर होनी चाहिए थी उसे भारत के वामपंथी दलिंदर वैचारिक भ्रष्ट ईतिहाषकारों ने नष्ट करके गुलामी की उस मानसिक्ता को आजतक जगाये रखा ।
अगर फेसबुक जैसा कोई स्वतंत्र पटल नहीं होता तो हिन्दू समाज का यह बीर योद्धा आज भी गुमनाम होता ।
एक श्रद्धा का फूल मेरी ओर से ईस महान और कालजयी योद्धा को समर्पित है ।
लान्गुल नरसिम्हा देवा १२०० सदी में वर्तमान भारतीय राज्य ओरीसा के राजा था, वर्तमान समय में मुगलों के आतंक से पीङित जनता का दुःख हरने के लिए नरसिम्हा देवा के रुप में स्वयं भगवान श्री जगन्नाथ ने अवतार लिया था ।
लान्गुल नरसिम्हा देवा जी महाराज धर्मनिष्ठ कर्तव्यपरायण राजा थे, और विधर्मीयों को उनकी शैली में जवाब देने वाले भारत के पहले राजा था ।
मुगलों की सेना दिल्ली और अन्य भारतीय क्षेत्रों पर कब्जाकरने के बाद भारत के अन्यशहरों की ओर रुख किया । तगुन खान के नेतृत्व में मुगल सेना ओरीसा की ओर चलदी मार्ग में पङनेवाले मठ मंदिरों को तोङते हुवे उनको मस्जिद का रुप देते हुवे, मुगल आगे बङ रहे थे उनके रास्ते जो भी आता हारकर मुसलमान बन जाता या फिर मार दिया जाता कुछ लोग धर्मबचाने के लिए जंगलों में छिप जाते थे ।
ओरिसा में हाहाकर मचाते हुवे तगुन खान की सेना ने उत्पात मचा रखा था, कलिंग सेना की हार के बाद जजन्गढ पर तगुन खान का कब्जा होगया था ।
तगुन खान ने अपना दूत लान्गुल नरसिम्हा देवा के पास भेजा और दूत के माध्यम से लान्गुल नरसिम्हा देवा के समक्ष प्रस्ताव रखा कि राजा ईस्लाम स्विकार करें और जगन्नाथ मंदिर से मुर्तियों को नष्टकरके उसे मस्जिद के रुप में परिवर्तित करें । पुरी का समस्त कार्यभार तगुन खान को सौंप दें ।
लान्गुल नरसिम्हा देवा ने तगुन खान का प्रस्ताव स्विकार कर लिया दिन तारीख तय हुई, जगन्नाथ मंदिर के प्रागण में ईस्लाम कबूलने और मंदिर को मस्जिद के रुप में पर्वीतित करने की बात हुई, मुगल सेना पति अपनी ईस जीत पर जश्न मना रहे थे ।
ईधर राजा लान्गुल नरसिम्हा देवा मंदिर परिसर से जगन्नाथ की प्रतिमा पुजारी और दर्शनार्थी भक्तों को शहर से दूर जंगल में भेजने की तैयारी कर रहे थे, बाहर से दर्शन करने वाले श्रद्धालूओं का पूरी प्रवेश वर्जित कर दिया गया था ।
पूरी कि तंग गलियों में सेना के सिपाही भेष बदल कर घूमने लगे थे, मंदिर के आसपास के घरों में महिला और पुरुष सिपाही परिवार की तरह रहने लगे थे ।
तय समय पर तगुन खान मौलवीयों की पल्टन और सेना के साथ पुरी पहुचा, पूरी की तंग सङकों पर तगुन खान की ईतनी बङी सेना का निकलना बहुत ही मुश्किल हो गया था ।
उन्होने घोङे हाथी जैसे संसाधन पूरी के बाहर ही छोङ दिया और छोटे छोटे दस्तों में पूरी मे प्रवेश करने लगे, जैसे ही दस्ता मंदिर में प्रवेश करता मंदिर में बैठे सेना के सिपाही हमला करके उन्हे मार डालते और कुछ उनके सवों को ईधर उधर छुपादेते थे, तगुन खान जैसे ही अपने अन्तिम जत्थे के साथ मंदिर में आया राजा की सेना ने उसे उसके सिपाहीयों को मार डाला गया तगुन खान डरकर बंगाल भाग गया राजा के सिपाहियों ने उसे बंगालतक भगाय था लेकिन वो बच कर भाग गया ।
अपनी ईस अद्भूत विजय पर प्रसन्न राजा और उनके सिपाहीयों ने जश्न का आयोजन किया और राजा लान्गुल नरसिम्हा देवा ने अपनी ईस विजय के उपल्क्ष में एक भव्य मंदिर के निर्माण की घोषणा की जिसे आज हम कोंकण सुर्य मंदिर के नाम से जानते है ।
यह अद्भूत मंदिर उसी विजय की शौर्यगाथा का प्रतिक है ।
जगन्नाथ परिसर को विधर्मीयों के रक्त से अभिषेक करनेवाले महान राजा लान्गुल नरसिम्हा देवा को नमन् करते हुवे ईतिहाष के ईस अमुल्य रत्न को पुनः प्रकाशित करने के लिए मैं वर्तमान ईतिहाषकारो से अनुरोध करता हूं शासन ईनके ईतिहाष की पूरी जानकारी निकाले ईसी कामना के साथ जय जगन्नाथ