जानिए रुद्राक्ष क्या हैं ?
03 Aug 2017,
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जानिए रुद्राक्ष का महत्त्व,रुद्राक्ष धारण विधि और रुद्राक्ष के ज्योतिषीय लाभ तथा रोगों में रुद्राक्ष का प्रयोग कैसे करें ?
रुद्राक्ष मानव जाति को भगवान के द्वारा एक अमूल्य देन है। रुद्राक्ष भगवान शिव का अंष है।
रुद्राक्ष धारण करना भगवान षिव के दिव्य ज्ञान को प्राप्त करने का साधन है। सभी मनुष्य रुद्राक्ष धारण कर सकते हैं । भारतीय संस्कृति में रुद्राक्ष का बहुत महत्व है। माना जाता है कि रुद्राक्ष इंसान को हर तरह की हानिकारक ऊर्जा से बचाता है। इसका इस्तेमाल सिर्फ तपस्वियों के लिए ही नहीं, बल्कि सांसारिक जीवन में रह रहे लोगों के लिए भी किया जाता है।
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्राह्मण को श्वेतवर्ण के रुद्राक्ष, क्षत्रिय को रक्तवर्ण के रुद्राक्ष, वैष्य को मिश्रित रुद्राक्ष तथा शूद्र को कृष्णवर्ण के रुद्राक्ष धारण करने चाहिए।
रुद्राक्ष धारण करने से बड़ा ही पुण्य प्राप्त होता है तथा जो मनुष्य अपने कण्ठ में बत्तीस, मस्तक पर चालीस, दोनों कानों में छः-छः, दोनों हाथों में बारह-बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है वह साक्षात भगवान नीलकण्ठ के रूप में जाना जाता है।
रुद्राक्ष एक खास तरह के पेड़ का बीज है।
रुद्राक्ष के पेड़ आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में एक खास ऊंचाई पर, खासकर हिमालय और पश्चिमी घाट सहित कुछ और जगहों पर भी पाए जाते हैं।
अफसोस की बात यह है लंबे समय से इन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल भारतीय रेल की पटरी बनाने में होने की वजह से, आज देश में बहुत कम रुद्राक्ष के पेड़ बचे हैं। आज ज्यादातर रुद्राक्ष नेपाल,बर्मा, थाईलैंड या इंडोनेशिया से लाए जाते हैं।
—शिवपुराण, लिंगपुराण, एवं सकन्द्पुराण आदि में इस का विशेष रूप से वर्णन किया हुआ है|
—रुद्राक्ष का स्पर्श, दर्शन, उस पर जप करने से, उस की माला को धारण करने से समस्त पापो का और विघ्नों का नाश होता है ऐसा महादेव का वरदान है, परन्तु धारण की उचित विधि और भावना शुद्ध होनी चाहिए|
—भोग और मोक्ष की इच्छा रखने वाले चारो वर्णों के लोगों को विशेष कर शिव भगतो को शिव पार्वती की प्रार्थना और प्रसंता के लिए रुद्राक्ष जरुर धारण करना चाहिए|
—आवले के फल के सामान रुद्राक्ष समस्त अरिष्टो का नाश करने वाला होता है|
—बेर के सामान छोटा दिखने वाला रुद्राक्ष सुख और सौभाग्य कीं वृधि करने वाला होता है|
—-रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करने से अनंत गुना फल मिलता है|
—जिस माला में अपने आप धागा पिरोया जाने योग्य छेद हो वह उत्तम होता है,प्रयत्न कर के धागा पिरोया जाये तो वह माध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष होता है|
इसी कारण रुद्राक्ष धारण करने वाला तथा उसकी आराधना करने वाला व्यक्ति समृद्धि, स्वास्थ्य तथा शांति को प्राप्त करने वाला होता है।
लेकिन फिर भी रुद्राक्ष धारण करते समय निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए: –
रुद्राक्ष को सिद्ध़ करने के बाद ही धारण करना चाहिए। साथ ही इसे किसी पवित्र दिन में ही धारण करना चाहिए।
– प्रातःकाल रुद्राक्ष को धारण करते समय तथा रात में सोने के पहले रुद्राक्ष उतारने के बाद रुद्राक्ष मंत्र तथा रुद्राक्ष उत्पत्ति मंत्र का नौ बार जाप करना चाहिए ।
– रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को मांसाहारी भोजन का त्याग कर देना चाहिए तथा शराब/एल्कोहल का सेवन भी नहीं करना चाहिए ।
– ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या और पूर्णमासी आदि पर्वों और पुण्य दिवसों पर रुद्राक्ष अवष्य धारण करना चाहिए ।
– श्मषान स्थल तथा शवयात्रा के दौरान भी रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही जब किसी के घर में बच्चे का जन्म हो उस स्थल पर भी रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए ।
– यौन सम्बंधों के समय भी रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए ।
– स्त्रियों को मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण नहीं करना चाहिए ।
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जानिए किस दिन करें रुद्राक्ष धारण ?
रूद्राक्ष को हमेशा सोमवार के दिन प्रात:काल शिव मन्दिर में बैठकर गंगाजल या कच्चे दूध में धो कर, लाल धागे में अथवा सोने या चांदी के तार में पिरो कर धारण किया जा सकता है।
रुद्राक्ष धारण करने का शुभ महूर्त– मेष संक्रांति,पूर्णिमा,अक्षय त्रितय,दीपावली,चेत्र शुकल प्रतिपदा,अयन परिवर्तन काल ग्रहण काल,गुरुपुष्य ,रवि पुष्य,द्वि और त्रिपुष्कर योग में रुद्राक्ष धारण करने से समस्त पापो का नाश होता है|
यदि किसी कारणवश रुद्राक्ष के विशेषरुद्राक्ष मंत्रों से धारण न कर सके तो इस सरल विधि का प्रयोग करके धारणकर लें। रुद्राक्ष के मनकों को शुद्ध लाल धागे में माला तैयार करने के बाद पंचामृत (गंगाजल मिश्रित रूप से) और पंचगव्य को मिलाकर स्नान करवानाचाहिए और प्रतिष्ठा के समय ॐ नमः शिवाय इस पंचाक्षर मंत्र को पढ़ना चाहिए।
उसके पश्चात पुनः गंगाजल में शुद्ध करके निम्नलिखित मंत्र पढ़ते हुए चंदन, बिल्वपत्र,
लालपुष्प, धूप, दीप द्वारा पूजन करके अभिमंत्रित करे और “ॐ तत्पुरुषाय विदमहे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र: प्रचोदयात” || इससेअभिमंत्रित करके धारण करना चाहिए।
शिवपूजन, मंत्र, जप, उपासना आरंभकरने से पूर्व ऊपर लिखी विधि के अनुसार रुद्राक्ष माला को धारण करने एवं एक अन्य रुद्राक्ष की माला का पूजन करके जप करना चाहिए। जपादि कार्यों में छोटे और धारण करने में बड़े रुद्राक्षों का ही उपयोग करें। तनाव से मुक्ति हेतु 100 दानों की,अच्छी सेहत एवं आरोग्य के लिए 140 दानों की,
अर्थ प्राप्ति के लिए 62 दानों की तथा सभी कामनाओं की पूर्ति हेतु 108 दानों की माला धारण करें। जप आदि कार्यों में 108 दानों की माला ही उपयोगी मानी गई है। अभीष्ट की प्राप्ति के लिए 50 दानों की माला धारण करें। द्गिाव पुराण के अनुसार 26 दानों की माला मस्तक पर, 50 दानों की माला हृदय पर, 16 दानों की माला भुजा पर तथा 12 दानों की माला मणिबंध पर धारण करनी चाहिए।
जिस रुद्राक्ष माला से जप करते हों, उसे धारण नहीं करें। इसी प्रकार जो माला धारण करें, उससे जप न करें। दूसरों के द्वारा उपयोग में लाए गए रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला को प्रयोग में न लाएं।
रुद्राक्ष की प्राण-प्रतिष्ठा कर शुभ मुहूर्त में ही धारण करना चाहिए
ग्रहणे विषुवे चैवमयने संक्रमेऽपि वा।
दर्द्गोषु पूर्णमसे च पूर्णेषु दिवसेषु च।
रुद्राक्षधारणात् सद्यः सर्वपापैर्विमुच्यते॥
ग्रहण में, विषुव संक्रांति (मेषार्क तथा तुलार्क) के दिनों, कर्क और मकर संक्रांतियों के दिन, अमावस्या, पूर्णिमा एवं पूर्णा तिथि को रुद्राक्ष धारण करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
मद्यं मांस च लसुनं पलाण्डुं द्गिाग्रमेव च।
श्लेष्मातकं विड्वराहमभक्ष्यं वर्जयेन्नरः॥
(रुद्राक्षजाबाल-१७)
रुद्राक्ष धारण करने वाले को यथासंभव मद्य, मांस,लहसुन, प्याज, सहजन, निसोडा और विड्वराह (ग्राम्यशूकर) का परित्याग करना चाहिए।
सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी प्रकृति के मनुष्य वर्ण, भेदादि के अनुसार विभिन्न प्रकर के रुद्राक्ष धारण करें।
रुद्राक्ष को शिवलिंग अथवा शिव-मूर्ति के चरणों से स्पर्द्गा कराकर धारण करें। रुद्राक्ष हमेद्गाा नाभि के ऊपर शरीर के विभिन्न अंगों (यथा कंठ,गले, मस्तक, बांह, भुजा) में धारण करें, यद्यपि शास्त्रों में विशेष परिस्थिति में विद्गोष सिद्धि हेतु कमर में भी रुद्राक्ष धारण करने का विधान है।
रुद्राक्ष अंगूठी में कदापि धारण नहीं करें, अन्यथा भोजन-द्गाौचादि क्रिया में इसकी पवित्रता खंडित हो जाएगी।
रुद्राक्ष पहन कर श्मशान या किसी अंत्येष्टि-कर्म में अथवा प्रसूति-गृह में न जाएं। स्त्रियां मासिक धर्म के समय रुद्राक्ष धारण न करें।
रुद्राक्ष धारण कर रात्रि शयन न करें।
रुद्राक्ष में अंतर्गर्भित विद्युत तरंगें होती हैं जो
शरीर में विद्गोष सकारात्मक और प्राणवान ऊर्जा का संचार करने में सक्षम होती हैं। इसी कारण रुद्राक्ष को प्रकृति की दिव्य औषधि कहा गया है।
अतः रुद्राक्ष का वांछित लाभ लेने हेतु समय-समय पर इसकी साफ-सफाई का विद्गोष खयाल रखें।
शुष्क होने पर इसे तेल में कुछ समय तक डुबाकर रखें।
रुद्राक्ष स्वर्ण या रजत धातु में धारण करें। इन धातुओं के अभाव में इसे ऊनी या रेशमी धागे में भी धारण कर सकते हैं। अधिकतर रुद्राक्ष यद्यपि लाल धागे में धारण किए जाते हैं, किंतु एक मुखी रुद्राक्ष सफेद धागे, सात मुखी काले धागे और ग्यारह, बारह, तेरह मुखी तथा गौरी-शंकर रुद्राक्ष पीले धागे में भी धारण करने का विधान है।
रूद्राक्ष को देखने भर से ही लाखों कष्ट दूर हो जाते हैं और इसे धारण करने पर करोडों लाभ प्राप्त होते हैं तथा इसे पहनकर मंत्र जाप करने से यह और भी ज्यादा प्रभावशाली होता है.
रूद्राक्ष वर्णन—जो रूद्राक्ष आंवले के आकार जितना बड़ा होता है वह रूद्राक्ष अच्छा होता है, जो रूद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह मध्यम प्रकार का माना जाता है. जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है. यह रूद्राक्ष माला के आकार के बारे में मेरा विचार है.
इसके बाद वह कहते हैं कि ब्राह्मण सफेद रूद्राक्ष है. लाल एक क्षत्रिय है. पीला एक वैश्य है और काले रंग का रूद्राक्ष एक शूद्र है.इसलिए, एक ब्राह्मण को सफेद रूद्राक्ष , एक क्षत्रिय को लाल, एक वैश्य को पीला और एक शूद्र को काला रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.
उन रूद्राक्ष-मोती को उपयोग में लाना चाहिए जो सुन्दर, मजबूत, बड़ा, तथा कांटेदार हो और उन रूद्राक्ष को नहीं लेना चहिए जो कहीं से टूटा हो या उस पर कीडा लगा है या कांटे बिना हो उचित नहीं होता, जिस रूद्राक्ष में प्रकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें खुद छेद किया जाए वह अच्छा नहीं होता, भगवान शिव के भक्त को रूद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए.
रुद्राक्ष धारण करने के लिए शुभ मुहूर्त या दिन का चयन कर लेना चाहिए। इस हेतु सोमवार उत्तम है।
धारण के एक दिन पूर्व संबंधित रुद्राक्ष को किसी सुगंधित अथवा सरसों के तेल में डुबाकर रखें। धारण करने के दिन उसे कुछ समय के लिए गाय के कच्चे दूध में रख कर पवित्र कर लें। फिर प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर क्क नमः शिवाय मंत्र का मन ही मन जप करते हुए रुद्राक्ष को पूजास्थल पर सामने रखें। फिर उसे पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर) अथवा पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, मूत्र एवं गोबर) से अभिषिक्त कर गंगाजल से पवित्र करके अष्टगंध एवं केसर मिश्रित चंदन का लेप लगाकर धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर विभिन्न शिव मंत्रों का जप करते हुए उसका संस्कार करें।
तत्पश्चात संबद्ध रुद्राक्ष के शिव पुराण अथवा पद्म पुराण वर्णित या शास्त्रोक्त बीज मंत्र का २१, ११, ५ अथवा कम से कम १ माला जप करें। फिर शिव पंचाक्षरी मंत्र क्क नमः शिवाय अथवा शिव गायत्री मंत्र क्क तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् का १ माला जप करके रुद्राक्ष-धारण करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करें। रुद्राक्ष धारण के दिन उपवास करें अथवा सात्विक अल्पाहार लें।
विशेष : उक्त क्रिया संभव नहीं हो, तो शुभ मुहूर्त या दिन में (विशेषकर सोमवार को) संबंधित रुद्राक्ष को कच्चे दूध, पंचगव्य, पंचामृत अथवा गंगाजल से पवित्र करके, अष्टगंध, केसर, चंदन, धूप, दीप, पुष्प आदि से उसकी पूजा कर शिव पंचाक्षरी अथवा शिव गायत्री मंत्र का जप करके पूर्ण श्रद्धा भाव से धारण करें।
विशेष सावधानी— रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए.
मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना हितकर होता है. आत्मिक शुद्धता के द्वारा ही रुद्राक्ष के लाभ को प्राप्त किया जा सकता है.
रुद्राक्ष मन को पवित्र कर विचारों को पवित्र करता है.