बिना स्वस्थ पर्यावरण के स्वस्थ इंसान कहां?
07 Jun 2017, 287
-बाबी रमाकांत- स्वास्थ्य से जुड़े लोग अक्सर पर्यावरण को महत्व नहीं देते और पर्यावरण से जुड़े लोग स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर कम बात करते हैं। जमीनी हकीकत तो यह है कि बिना स्वस्थ पर्यावरण के, इंसान समेत जीवन के सभी रूप, स्वस्थ रह ही नहीं सकते। जीवन से जीवन पोषित होता है। सरकारों ने सतत विकास लक्ष्यों का वादा तो किया है जिनमें स्वास्थ्य, पर्यावरण, लिंग जनित समानता, शहरी ग्रामीण सतत विकास, आदि सभी मुद्दों को एक दूजे पर अंतरंग रूप से निर्भर माना गया है पर सही मायनों में जिस विकास मॉडल के पीछे हम भाग रहे हैं वो हमारे पर्यावरण का विध्वंस कर रहा है और जीवन को अस्वस्थ। वायु प्रदूषण के कारण होते हैं 36 फीसदी फेफड़े के कैंसर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि 36 फीसदी फेफड़े के कैन्सर वायु प्रदूषण की वजह से होते हैं। अभी तक यह वैज्ञानिक प्रमाण थे कि फेफड़े के कैन्सर का सबसे बड़ा कारण है तम्बाकू धूम्रपान (जो शोध पर आधारित सही तथ्य है पर 36 फीसदी फेफड़े के कैंसर वायु प्रदूषण से भी होते हैं)। तम्बाकू से अनेक प्रकार के कैन्सर होने का ख़तरा कई गुना बढ़ता है। तम्बाकू से अन्य जानलेवा रोग होने का ख़तरा भी बढ़ता है जैसे कि हृदय रोग, पक्षाघात, डायबिटीज या मधुमेह, दीर्घकालिक श्वास रोग, आदि बताया प्रोफेसर (डॉ) रमा कान्त ने जो किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के पूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक रहे हैं। फेफड़े के कैंसर रोकने के लिए सरकार वचनबद्ध फेफड़े के कैंसर रोकने के लिए सरकार वचनबद्ध है, कहना है सीएनएस की अध्यक्ष और लोरेटो कान्वेंट की पूर्व वरिष्ठ शिक्षाविद् शोभा शुक्ला का। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 और संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (एसडीजीएस) दोनों में भारत सरकार ने वादा किया है कि फेफड़े के कैंसर समेत सभी गैर संक्रामक रोगों से होने वाली असामयिक मृत्यु दर में 2025 तक 25 फीसदी गिरावट और 2030 तक 33 फीसदी गिरावट आएगी। फेफड़े के कैंसर के दर में गिरावट कैसे आएगी? वायु प्रदूषण और तम्बाकू मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो गयी है (न कि गिरावट)। जिस विकास मॉडल के पीछे हम भाग रहे हैं उनसे तो वायु प्रदूषण और अधिक बढ़ेगा। अगर हमारी विकास मॉडल में मूल बदलाव नहीं आया, तो सम्भावना है कि उद्योग बढ़ेंगे, प्राकृतिक संसाधन का अनियंत्रित दोहन बढ़ेगा, जल जंगल जमीन तेजी से शहरीकरण के मॉडल पर आहुति चढ़ेंगे, सड़क पर दौड़ने वाली गाड़ियां बढ़ेंगी आख़िर हम कैसे वायु प्रदूषण कम करेंगे? जाहिर है कि जिस विकास मॉडल के पीछे हम भाग रहे हैं वो सबको अस्वस्थ कर रहा हैः क्या अमीर लोग वायु प्रदूषण से बच पाएंगे? फेफड़े के कैंसर और अनेक जानलेवा रोग अमीर गरीब सबको हो रहे हैं, हालांकि गरीब अधिक प्रभावित होता है। सिर्फ सरकार ही नहीं आम जनमानस भी इस बहस में सक्रियता से हिस्सा ले कि सतत विकास का क्या स्वरूप होना चाहिए। उद्योग और अमीर वर्ग ही यह न तय करे कि विकास का स्वरूप कैसा होः गरीब और वंचित वर्ग की सहभागिता इस प्रक्रिया में जरूरी है कि सतत विकास का स्वरूप कैसा हो। स्मार्ट शहर और स्मार्ट गांव कैसा हो इसमें गरीब और वंचित वर्गों की राय और सहमति हो। अस्थमा या दमा भी एक ऐसा गैर संक्रामक रोग है जो बढ़ोतरी पर है जबकि सरकारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का वादा है कि अस्थमा समेत सभी गैर संक्रामक रोगों से होने वाली असामयिक मृत्यु दर 2025 तक 25 फीसदी कम होगा। हाल ही में यह रिपोर्ट आयी कि जबतक वायु प्रदूषण कम नहीं होगा अस्थमा या दमा से होने वाली मृत्यु दर में बढ़ोतरी होगी (गिरावट नहीं)। जलवायु परिवर्तन के कारण, अगले 10 सालों में अस्थमा या दमा से होने वाली मृत्यु दर में 20 फीसदी बढ़ोतरी हो सकती है जब कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2025 तक मृत्यु दर को 25 फीसदी कम करने का सपना दिखा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारणवश संक्रामक रोगों में इजाफा जलवायु परिवर्तन के कारणवश संक्रामक रोगों में भी इजाफा हुआ हैः अनेक शोध और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारणवश, मलेरिया और मच्छर के जरिये संक्रमित होने वाले रोग (डेंगू, जिका आदि) अधिक विकराल रूप ले रहे हैं। भारत सरकार ने वादा किया है कि 2030 तक मलेरिया उन्मूलन का सपना साकार होगा। यदि जलवायु परिवर्तन एक विकराल चुनौती बना रहेगा तो मलेरिया उन्मूलन कैसे होगा? कहना है शोभा शुक्ला का। जिन समुदाओं को प्राकृतिक विपदाओं से जूझना पड़ता है उनको अनेक प्रकार के स्वास्थ्य सम्बन्धी जटिल समस्याओं से भी निबटना पड़ता है। बाढ़, भूकंप, आदि के दौरान स्वास्थ्य सेवा कुप्रभावित या ठप होने की वजह से कठिनाई बढ़ती है। पानी, वायु आदि के जरिये फैलने वाले संक्रामक रोग भी जड़ पकड़ लेते हैं और गैर संक्रामक रोगों का उपचार और उचित देखभाल दूभर हो जाता है। पर्यावरण स्वस्थ रहेगा तो ही इन्सान स्वस्थ रह सकता है अस्वस्थ पर्यावरण से न केवल हमारा स्वास्थ प्रभावित होता है बल्कि सामान्य जीवन यापन भी कुंठित होता है। चाहे अमीर हो या गरीब, सभी इसकी चपेट में आते हैं-हालांकि गरीब और वंचित समुदाय के लोग अधिक प्रकोप झेलते हैं। यह जरुरी है कि हम जिस सतत विकास मॉडल को लक्ष्य मान कर उसके लिए प्रयास कर रहे हों वो जलवायु परिवर्तन, और सभी विकास मानकों पर खरा उतरे। (लेखक विश्व स्वास्थ्य संगठन महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत, सीएनएस के स्वास्थ्य संपादक और नीति निदेशक हैं।)

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