दिल्ली में मोदी और यूपी में योगी राज

-प्रभुनाथ शुक्ल- भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व पालटिक्स के टाइगर योगी आदित्यनाथ को राज्य का सीएम चेहरा बना सभी अटकलों पर विराम लगा दिया है। योगी अपने दो सहयोगियों केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा के साथ 47 मंत्रीमंडलीय सहयोगियों के साथ शपथ भी ली। भाजपा के लिए यह मौका बेहद उत्साहवर्द्धक रहा। राज्य में पार्टी 14 सालों के वनवास के बाद लौटी है। भाजपा में सीएम पद को लेकर काफी मंथन चला आखिरकार पार्टी ने राज्य की कमान हिंदुत्व छबि के प्रतीक योगी आदित्यनाथ को सौंपी गयी। योगी को सीएम की कमान सौंपने का फैसला गोरखपुर में गोरक्ष पीठ में बहुत पहले हो चुका था। इस पर आरएसएस और संत समाज ने अपनी मोहर लगाई थी। लेकिन चुनाव बगैर सीएम के चेहरे के लड़ा गया था लिहाजा इस बात का खुलासा नहीं किया गया। शीर्ष नेतृत्व ने योगी को सामने लाकर एक तीर से कई निशाना साधा है यानी किलिंग टू बड्र्स बिथ वन स्टोन का फार्मूला अपनाया। दिल्ली में मोदी और यूपी में योगी राज आ गया। एक फकीर और दूसरा योगी। निश्चित तौर पर यह जोड़ी राज्य को विकास के नए शिखर तक ले जाएगी। योगी को राज्य की सत्ता सौंप पीएम मोदी और शाह के आलावा आरएसएस ने अपना मंतब्य साफ कर दिया है। राज्य में पार्टी निगाहें 2019 में होने वाले लोकसभा मिशन पर टिकी हैं। हालांकि पार्टी के इस निर्णय से विरोधियों को अपच होती दिखती है, लेकिन राज्य में भाजपा को मिली भारी जीत ने जनादेश उसके पक्ष में दिया है। वह किसे मुख्यमंत्री घोषित करती है यह उसका अपना आतंरिक फैसला है। योगी को काम का पूरा वक्त दिए बगैर सिर्फ उनकी उग्र हिंदुत्ववादी छबि पर सवाल उठाना नाइंसाफी होगी। पीएम मोदी ने भी जब प्रधानमंत्री का दायित्व संभाला था तो उस दौरान भी यह बात उठी थी। लेकिन आज स्थितियां कितनी बदली गई हैं। पूरे देश में मोदी की आंधी चल रही है। कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो चला है। भाजा का पूर्वोत्तर जैसे राज्यों में भी अपना पांव जमा लिया है। देश की 58 फीसदी आबादी पर भाजपा का कब्जा हो चला है। दलित, मुस्लिम वर्गों में भी भाजपा, मोदी और उसकी नीतियों का जलवा चढ़ कर बोल रहा है। अगर ऐसा न होता तो राज्य के दलित और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में भाजपा को बड़ी जीत नहीं मिलती। प्रतिपक्ष को दिमाग खोल कर यह बात समझनी चाहिए। सिर्फ विरोध और वोट की राजनीति के लिए हिंदुत्व के खिलाफ नगाड़े पिटना अच्छी बात नहीं। वक्त के साथ जो बदलना जानता है वहीं असली खिलाड़ी होता है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। यहां की चुनौतियां भी बड़ी हैं। जिसे संभालना योगी की चुनौती होगी। विकास, कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा के साथ किसानों, युवाओं की समस्याएं के साथ रोजगार बड़ी चुनौती होगी साथ ही पूर्व सरकार की चालू योजनाओं को मंजिल तक पहुंचाना भी अहम होगा। चुनावों के दौरान पार्टी की तरफ से किए लोकलुभावन नारों और घोषणाओं पर अमल करना और उसे लागू करना भी एक नया चैलेंज होगा। 14 साल के वनवास के बाद भाजपा राज्य की सत्ता में लौट रही है। भाजपा और पीएम मोदी में सभी जाति-धर्म के लोगों ने विश्वास जताया है। लिहाजा उनके विश्वास की रक्षा करना भी उनकी जिम्मेदारी होगी। किसानों की कर्जमाफी, अपराध नियंत्रण और सरकारी नियुक्तियों में पारदर्शिता, युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना जैसी समस्याएं सामने होंगी। इकसे अलावा भाजपा को बड़ी जीत दिलाने वाले पोलराइजेशन का भी खयाल रखना होगा। आम तौर यह माना जा रहा था की भाजपा योगी आदित्यनाथ पर दांव नहीं खेलेगी। क्योंकि यूपी प्रशासनिक लिहाज से बड़ा राज्य है। राज्य की सत्ता संचालन के लिए किसी अनुभवी सीएम का नाम प्रस्तावित किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पार्टी ने राजनाथ ंिसंह पर दांव लगाने के बजाय मंथन के बाद योगी पर पांसा खेला। योगी पीएम मोदी के करीबी और चहेते माने जाते हैं। दूसरी बात लव-जेहाद को लेकर उन्होंने पार्टी को अलग पहचान दिलायी। पूर्वांचल में उनकी हिंदुत्व वाहिनी सेना अलग पहचान रखती है। दक्षिण भारत में अगर शिवसेना हिंदुत्व का झंडा बुलंद करती हैं। कभी बालासाहब ठाकरे को हिंदुत्व शेर के नाम से जाना जाता था। वहीं स्थिति उत्तर भारत में योगी आदित्यनाथ और उनकी हिंदुत्व वाहिनी सेना का है। योगी भी शेर के साथ खेलते दिखते हैं। हालांकि पार्टी में जिन लोगों को सत्ता की कामान सौंपी गयी हैं वे सभी नए चेहरे हैं। राज्य संचालन का अनुभव नहीं है। दूसरी बात राज्य विधानमंडल दल की किसी के पास सदस्यता नहीं है। छह माह बाद सभी को राज्य विधानमंडल दल की सदस्यता लेनी होगी। दूसरी बात योगी और केशव प्रसाद मौर्य को संसद की सदस्यता से त्यागपत्र देना होगा। योगी गोरखपुर से और मौर्य फूलपुर संसदीय सीट से सांसद हैं जबकि दिनेश शर्मा लखनउ के मेयर हैं। राज्य की चुनौतियों और 2019 को देखते हुए पार्टी ने जातियों का भी विशेष खयाल रखा है। योगी मंत्रीमंडल में सभी जातियों को तवज्जों दी गयी है। योगी आदित्यनाथ मूलतः उत्तराखंड के पौड़ीगढ़वाल से आते हैं लेकिन अब उनकी पहचान गोरखपुर से है। हिंदु विचारधारा की जो छबि नागपुर की है। अब वहीं यूपी में गोरखपुर की उभर रही है। गोरखपुर मिनी नागपुर बनता दिख रहा है। देश की राजनीति और यूपी का पूर्वांचल पालटिक्स पावर सेंटर बनता दिख रहा है। यह हिंदुत्व के गढ़ के रुप में भी उभर रहा है। योगी उग्र हिंदुत्व छबि के ब्रांड अंबेसडर के रुप में उभरे हैं। गुजरात में होने वाले आम चुनाव के लिए भी यह स्थिति सुखद होगी। योगी गोरखपुर से पांच बार सांसद चुने जा चुके हैं। योगी को सामने रख जहां हिंदुत्वकार्ड खेला गया है वहीं क्षत्रिय विरादरी को भी रिझाने का पांसा डाला गया है। केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी जाति से आते हैं। राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा का जीत दिलाने में पिछड़ी जातियों में खास भूमिका निभायी है। वहीं दिनेश शर्मा ब्राहमण जाति से हैं। लिहाजा डिप्टी सीएम बना कर 11 फीसदी ब्राहमणों को साधने की कोशिश की गयी है। योगी मंत्रीमंडल में सभी जातियों और समुदाय के साथ क्षेत्रों को अहमियत दी गयी है। पूर्वांचल से लेकर पश्चिमी यूपी और बुंदेलखंड को तवज्जों दी गयी है। राजनीतिक लिहाज से पूर्वांचल भाजपा के लिए अहम हैं। यहां की 141 सीटों में 111 पर भाजपा का परचम लहराया। जबकि एसपी 14 और बीएसपी 12 सीट सिर्फ जीतने में कामयाब रहीं। जबकि कांग्रेस पूरे पूर्वांचल में केवल कुशीनगर की सीट जीत पायी। पूर्वांचल के 25 जिलों में 11 की सभी सींटे भाजपा की झोली में गई हैं। 15 साल बाद पूर्वांचल का कोई व्यक्ति मुख्मंत्री की कुर्सी तक पहुंचा है। 2002 में राजनाथ सिंह पूर्वांचल के अंतिम मुख्यमंत्री थे। ऐसी स्थिति में योगी को काम करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। जिम्मेदारी और दायित्व मिलने के बाद व्यक्ति अनुभवी हो जाता है। राज्य में जाति-धर्म का तिलस्म टूटा हैं। एक नयी विचारधारा का प्रतिस्टफूटन हुआ है। योगी सब को साथ लेकर चलेंगें और भाजपा सबका विकास करेगी। बस योगी को थोड़ा वक्त दीजिए। (लेखक: स्वतंत्र पत्रकार हैं)